रमन का शीतल प्रेम | भाग- 1 : अंतर्विरोध और दिशा | Raman ka Seetal Prem | Chapter- 1: Antar Virodh Aur Disha
रमन का शीतल प्रेम
भाग- 1
अंतर्विरोध और दिशा
दृश्य 1:
रवि की माँ: रमन आया था।
रवि: रमन ! कौन रमन?(वो सर खुजलाते हुए बोला)
माँ: तेज़ स्वर में रमन का चित्रण प्रस्तुत करते हुए, वही तेरा काला दब्बू दोस्त, सावित्री का लड़का।
रवि: अच्छा वो! वो मेरा दोस्त नही है, बस साथ क्लास में पढ़ता है (वो मुस्कुराते हुए बोला)
माँ: हाँ वही, पूछ रहा था तुझे।
रवि: अरे पर उस गधे को मुझसे क्या काम?(उसने उत्सुकता के साथ सवाल किया)
माँ: दो दिन से बीमार था, इसीलिए कॉलेज नही जा पाया। शायद नोट्स चाहिए उसको।(इस बार माँ का स्वर गंभीर था)
रवि: (खिलखिलाते हुए) मुझे समझ जाना चाहिए था कि पढ़ाई के अलावा उस बेवकूफ़ को क्या काम होगा मुझसे।
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सावित्री! अगर रवि की माँ के शब्दों में कहें तो हाँ वही काले से दुबले-पतले रमन की माँ सावित्री।
एक अधेड़ उम्र की गरीब पर सिद्धांतो पर अडिग विधवा, जो हर रोज़ घर-घर जाकर काम करती है और उससे अपना और अपने एकलौते बेटे की पढ़ाई का ख़र्च उठाती है। उसकी बातों पर मत जाना, वो एक सुदृढ़ और आत्मविश्वास से भरी महिला है, पर उसके बालों की सफेदी और माथे पर पड़ी सिलवटे उसके दर्द को खूब बयाँ करती हैं, वो कभी रोती नहीं है और अपना दर्द किसी से साझा भी नही करती। उसे शायद अपने बेटे की फ़िक्र है, उसे मज़बूत रहना होगा ,वो कमज़ोर नही पड़ सकती। कहते हैं जब आँखों का पानी सूख जाता है तो दिल में कई ज्वालामुखी फटते हैं, पर उनकी आहट नहीं होती। आप शायद वो दर्द नही समझ सकते पर यूँ भी है, कि वक़्त सब कुछ समझा देता है, वक़्त आने पर आप भी समझ जाओगे।
रमन: माँ ओ माँ आज दिन की थोड़ी सी बूंदाबांदी में घर की छत चू रही थी अब तो बरसात का मौसम भी सामने हैं जाने क्या होगा कुछ बच्चे ट्यूशन पढ़ाने को भी कह रहे थे, आपकी आज्ञा हो तो उनको ट्यूशन पढ़ा दूँ, कुछ पैसे तो मिल ही जाएंगे। (घबराये हुए स्वर में जिज्ञासा के साथ रमन फुसफुसाया)
रमन सांवला पर गहरे नयन नक्श के साथ कम बोलने वाला लड़का अंतर्विरोधों में घिरा, उसकी लंबाई तकरीबन 5'8 और उम्र 18-19 होगी। हाँ, शायद कुछ भी तो खास नहीं है उसमें, पर कहते हैं ना कमल कीचड़ में ही खिलता है। सावित्री का बेटा है, कम बोलता है, हिम्मतवाला है, कभी अपने उसूलों से समझौता नहीं करता। वह बी.अस.सी सेकंड ईयर का एक उज्जवल छात्र है, उसका शायद कोई दोस्त भी नहीं है, बात ऐसी है गरीबों से अक्सर लोग दूरी बना लेते हैं। पर अच्छा भी है ,मोहल्ले के वह उद्दंड, फूहड़, गंवार, अगर उनकी दोस्ती रमन को मिल भी गई होती तो उसका नुकसान ही हुआ होता।
सावित्री : (रमन को समझाते हुए गंभीर स्वर में ) तू क्यों परेशान होता है, तेरे तो इम्तिहान भी पास हैं, तू केवल पढ़ाई पर ध्यान लगा। मैं दो-चार घर और काम कर लूंगी , ठीक हो जाएगी छत। यह पहली बार नहीं है, बाकी ऊपरवाला सब देख रहा है।
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(मोहल्ले के उज्जड़ लड़के आपस मे फुसफुसाते हुए)
पहला लड़का: अरे वह आ रही है ,बाल ठीक कर।
दूसरा लड़का: चल पीछे हट, तेरी भाभी है वो।
पहला लड़का: अबे चल उसको देख और फिर खुद को।
तीसरा लड़का: आपस में लड़ मरो सब।
मोहल्ले के फूहड़ शीतल को देखकर अक्सर ही बौरा जाया करते थे, और वह! वह कौन सी कम है, आशिकों का जनाज़ा निकालने का हुनर कोई उस कातिल से पूछे।
शीतल ! अर्द्ध चंद्र ग्रहण में फैली दूधिया चांदनी सा रंग, गदरीला बदन , सुडौल कद काठी , नयन ऐसे कि शायद मछली को भी शर्म आ जाए। होंठों में समाई कमल से भी दिलकश मुस्कुराहट, वाकपटु ,चपल, सकल ऊर्जा से भरी किसी देवी की प्रतिमूर्ति प्रतीत होती है। सूट के ऊपर जब वह लाल दुपट्टा लेती है, तो शायद "मोहिनी" शब्द से उसको सुसज्जित करना भी पर्याप्त ना होगा।
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शीतल उसी मोहल्ले में रहती है जिसमें कि हमारा रमन। अचरज की बात यह है कि दोनों कॉलेज की एक ही क्लास में पढ़ते हैं और आपस में ना कोई बात है ना ही कोई चीत। शायद आपको पता है कि नहीं शीतल चाहे पूरे कॉलेज और मोहल्ले के लिए हूर हो , पर नूर वह केवल अपने शरीफ़ रमन की आंखों में है। हाँ, आप ठीक समझे, हमारा रमन दिल ही दिल में शीतल को चाहने लगा है। बेवकूफ़ी की इंतहा यह है कि वह कॉलेज से घर आने के बाद कम से कम 5-6 बार साईकल से शीतल के घर के चक्कर लगाता है और उसको शक ना हो इसलिए कभी खाली बोरी, कभी टीन, कभी बर्तन पीछे रख लेता है, जैसे कि घर का कोई काम करने जा रहा हो। अब दिन में तो माँ होती नहीं इसलिए चोरी पकड़े जाने के आसार कम है। शीतल की एक झलक पाने के लिए कोई बहाना ना मिलने पर इस भोले भंडारी को मोहल्ले के फूहड़ लड़कों को भी साइकिल में पीछे बिठा कर घुमाने से कोई परहेज नहीं है। शीतल शायद ये जानती है और शायद नहीं भी जानती क्योंकि इस सीधे-साधे बेहद ही आम दिखने वाले गरीब लड़के में उसकी कोई रुचि हो भी तो क्यों हो?
पढ़ाई में अब रमन का मन नहीं रमता। उसको किताबों में अब शीतल दिखाई देती है और जब नहीं दिखती तो वह साइकिल लेकर शीतल के घर की ओर निकल जाता है। अब रमन का लक्ष्य पढ़ लिखकर घर को संभालना नहीं बल्कि "शीतल एक खोज" बन चुका है। उसको यह भ्रम है कि माँ कुछ नहीं जानती पर शायद वह अपनी माँ को अभी कम जानता है। उसका बदलता वार्तालाप का ढंग और आदतें माँ को बहुत हद तक आगाह कर देती हैं, माँ इस दौर से गुजर चुकी है और सब जानती है पर अभी वह वक्त नहीं आया कि वह रमन को असहज करे और उसका मार्ग दोबारा से प्रशस्त करे, वह चाहती है कि रमन खुद समझे क्योंकि यह ना रमन की पहली चुनौती है और ना ही आखरी।
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पढ़ाई लिखाई में अब रमन पिछड़ने लगा है। क्लास में रहते हुए भी उसका ध्यान केवल शीतल पर रहता है, पर वह अपने दायित्वों और मजबूरियों को खूब जानता है। अब ऐसे में वह शीतल से कहना तो चाहता है पर मन ही मन अंतर्विरोधों से घिरा हुआ है, उसको नतीजे का आभास है और वह अपनी सीमाओं को भी बखूबी जानता है।
हेड मास्टर साहब उसको और सावित्री को जानते हैं, वो रमन के अंतर्द्वंद से तो अनभिज्ञ हैं पर उसके गिरते पढ़ाई के स्तर को लेकर बेहद चिंतित हैं। दिन प्रतिदिन रमन को अपने सवालों पर बार-बार निरुत्तर होते देख उनसे न रहा गया।
हेड मास्टर (झुँझलाकर) : क्या विचार है? जिंदगी में कुछ करना है या यूँ ही आवारागर्दी में गर्दिश के साथ दिन काटने हैं अपने बारे में नहीं तो अपनी माँ के बारे में तो सोंचो उसकी बहुत उम्मीदें हैं तुमसे।
सारी क्लास ठहाके लगा रही थी। रमन जहर का घूंट पीकर रह गया, आज उसको हेड मास्टर जी द्वारा कही गई बात कांटे की तरह चुभ रही थी। पर इस गुमनाम प्रेम ने शायद उसे दिशा विहीन कर दिया था। उस बावरे को गुस्से में भी इस बात का संतोष था कि जब सब मदहोश थे तब शीतल गंभीर और अधीर लग रही थी...