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Saturday, July 20, 2019

खंडहर | Khandhar



खंडहर | Khandhar


उनसे पलभर में रूठना और फिर मान जाना,
जी भर मार-पिटाई और फिर तिरछी आंखें दिखाना,
भाई-बहन उफ़ मेरा बचपन और वो घर,
हाँ वही घर जो अब खंडहर सा हो गया है।

माँ के हाथ की रोटी, वो लोरियाँ रात में जो हमको सुलाती थीं,
पापा का गुस्सा, तकरार और वो प्यार सब याद है मुझे,
माँ-बाप का कंधा और छोटा सा मैं,
मैं जो दशहरे की भीड़ में शायद सबसे ऊंचा हो जाता था,
चलो लौट चलें उस घर,
वही घर जो अब खंडहर सा हो गया है।

वो मेरा पहला प्यार, एटलस साईकल और उसका मोहल्ला,
एक अल्लढ़, एक दीवाना, मैं एक बेवकूफ सा लड़का,
उसकी एक झलक के लिए मैं जो पलभर में धरा नाप देता था,
सब याद है मुझे, आँखें झुका कर उसका चल देना,
वो सादगी, वो शर्म जो कभी उसकी आँखों से मेरी आँखों मे भी उतर आया करती थी,
उसका घर मेरे घर के पास ही तो था,
मेरा घर, वही घर जो अब खंडहर सा हो गया है।

मेरे दोस्त, मेरे यार वो सब थे मेरे हमसाये,
हम सब वहीं पले बढ़े, अगणित शरारतें, हम कितनी मार खाए,
वो फूहड़ ,वो गंवार , वो संगी-साथी जो जान थे मेरी,
आज वो दिन है कि वो पहचान में भी नही,
लौटा दो उन्हें, मेरे घर के पास ही तो रहते थे वो,
पर वो घर, हाँ वही घर जो अब खंडहर सा हो गया है।

अब ना बचपन है और ना भाई-बहन के साथ वो तकरार ही रही,
फूहड़ दोस्तों से रुक्सती तो उससे भी पुरानी है,
वो मासूम सी लड़की जो माशूक थी मेरी,
उससे कोई ताल्लूक तो नही पर अब वो उसी बचपन मे उलझे एक बच्चे की माँ है,
मेरे माँ-बाप, वो तो वही हैं, मैं ही उनसे दूर हूँ शायद,
और फिर मेरा वो घर, हाय वही घर जो अब खंडहर सा हो गया है।।


@हमारे पुराने अलीगंज के घर को समर्पित
घर संख्या: 296, अलीगंज, लोधी-रोड, नई दिल्ली-110003


-विव



@Viv Amazing Life

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