Showing posts with label erudition. Show all posts
Showing posts with label erudition. Show all posts

Sunday, September 6, 2020

शिक्षा प्रणाली में विद्या का अभाव | Shiksha Pranali Mein Vidya Ka Abhav

10:14 PM 7




शिक्षा प्रणाली में विद्या का अभाव | Shiksha Pranali Mein Vidya Ka Abhav 




शिक्षित होना हमारे व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक है, छात्रों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा इस दिशा की ओर संकेत भी देती है। सारांश में कहें तो शिक्षा प्रणाली के अनुसार अंक प्रतिशत छात्रों की विद्वता का सूचक है और यही वो मानक है जो छात्रों के भविष्य को रेखांकित करता है।

परंतु क्या यह मानक सच में विद्वता को रेखांकित करने में समर्थ है? यदि है, तो प्रतिवर्ष छात्र आत्महत्याओं में बढ़ता प्रतिशत किस ओर संकेत दे रहा है। यदि नही, तो क्या यह कोई भ्रम है जो छात्रों को चिंता का मार्ग दिखा जीवन राह से भटका रहा है? इस प्रश्न का उत्तर अत्यंत जटिल है।
 
एक प्रश्न और है, वह सत्य में आपको विचलित कर सकता है कि हमारे शिक्षण स्थानों में शिक्षा का तो स्तर है पर क्या विद्या का भी कोई स्थान है?
 
यदि है, तो मूलतः उसका कोई प्रतिबिंब हमें आजकल बच्चों के आचरण में क्यों नहीं दिखता। यदि नहीं, तो हम शिक्षालय को विद्यालय कह कर अपनी अज्ञानता का प्रसार क्यों करते हैं। हम शिक्षित जनों को विद्वान कहने में संकोच क्यों नही करते और यदि वो विद्वान हैं तो विद्वता कहाँ है?
 
समस्या का समाधान करना है तो सर्वप्रथम समस्या को पूर्णतः समझना आवश्यक है। बिना परिप्रेक्ष्य समझें हम निवारण हेतु प्रयत्नशील नहीं रह सकते यह मानव प्रवृत्ति है।
 
मूल प्रश्न यह है कि शिक्षा क्या है? यदि यह विद्या नहीं तो विद्या क्या है? और यदि, साधारण जीवन में शिक्षा का अभाव नहीं है तो विद्या का बोध और अनुसरण क्यों आवश्यक है?
 
शिक्षा को यदि हम परिभाषित करें तो यह लिखित एवं भौतिक ज्ञान है, यह वो प्रतिलिपि अथवा जानकारी है जिसका अनुसरण कर हम और हमारी सभ्यता आधुनिक उन्नति और प्रगति की दिशा में निरंतर बढ़ती है। भारतवर्ष में होती उन्नति एवं प्रगति हमारे बीच में बढ़ते शिक्षा स्तर का परिचायक है।
 
हमारे समाज में अधिकांश जनों के लिए यह उन्नति ही जीवन आधार है, उनके लिए ये ही मानवता और सभ्यता के निरंतर अग्रसर होने का सूचक भी है। तो फ़िर, विद्या का स्थान ही कहाँ रह जाता है, यदि इसकी आवश्यकता ही प्रतीत नहीं होती है?
 
हम शायद यह भूल जाते हैं कि यदि शब्द ज्ञान ही मानवता का परिचायक होता तो इस सृष्टि को कभी विद्वता की आवश्यकता ही न पड़ी होती।
 
विद्या को यदि हम परिभाषित करें तो पायेंगे कि यह जीव मुक्ति का आधार है। इस के आभाव में सदाचार, मानवीय कर्तव्यों, आत्मबोध, संस्कार, जीवन के उद्देश्य, सही गलत के मध्य भेद कर पाना संभव ही नहीं।

शिक्षा हमें प्रगति और जिज्ञासा तो देती है, परंतु चिंता, अहंकार और तामस प्रवृत्तियों से भी भर देती है। विद्या मन को स्थिर रख मुक्ति की राह उद्घोषित करती विभा है, यह चिंता, अंधविश्वास और अहंकार को हर लेती है।
 
यह अपने प्रकाश से मनुष्य के भीतर नव ऊर्जा का संचार और जीवन के उद्देश्य के प्रति जागरूकता का बीज रोपित भी करती है। विद्या के अभाव में मनुष्य किसी भी ज्ञान को अर्जित कर लेने के पश्चात भी मस्तिष्क से पशु ही रहता है।
 
हमारे वेद, पुराण और यहाँ तक की पंचतंत्र की कथाएं, विद्या का अगाध स्रोत हैं। उदहारण स्वरूप: कृष्ण-सुदामा की कथा, दधीचि का त्याग, दानवीर शिबि, हरिश्चन्द्र और कर्ण की गाथाएं, सावित्री-सत्यवान कथा, चार विद्वानों की शेर को जीवित करने की कथा इत्यादि सभी हमें सही गलत का भेद करने में सहायक हैं और जीवन उद्देश्य एवं जन कल्याण की राह भी दिखाती हैं।
 
आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो शिक्षा प्रणाली के अंक प्रतिशत मानक के कारण छिड़ा रण छात्रों में मूलतः चिंता और संताप भर रहा है। विद्या के आभाव में केवल शिक्षा के मद में झूमता युवा अपनें कर्तव्यों से विमुख हो केवल अतिउन्नति की दिशा में अग्रसर है। इसके परिणाम स्वरूप भारतवर्ष में बढ़ती आत्महत्या की दर, असहिष्णुता, वृद्धाश्रम, धर्मगुरुओं और राजनेताओं का बिन आंकलन समर्थन, धर्मों के बीच बढ़ता विवाद इत्यादि इसी उद्देश्य हीन व्यक्तित्व का प्रतिबिंब मात्र है। इतना ही नहीं प्रकृति और वायु में घुलता गरल, ग्लोबल वार्मिंग इत्यादि भी कर्तव्य विहीन इसी आधुनिक उन्नति के परिणाम हैं।
 
इस असामाजिक अराजक उन्नति का उत्तरदायित्व केवल शिक्षा प्रणाली के कंधों पर रखना भी उचित नहीं है। स्मरण रहे, शिशु के पहले शिक्षक और गुरु दोनों माता पिता होते हैं। हम सब और हमारा समाज देश को इस स्तिथि में लाने के लिए बराबर के उत्तरदायी हैं।
 
हमारे भारतवर्ष ने शिक्षा दर में उन्नति की है अब समय है शिक्षा प्रणाली में विद्या को शिक्षा के समान अधिकार देने का, अंततः विद्या और शिक्षा का समावेश ही सही मायनों में हमारे युवाओं को दिशा दिखायेगा, जिसके फलस्वरूप हमारा देश जन कल्याण और मानव प्रगति के मार्ग पर अग्रसर हो सकेगा।
 
विद्या का अनुसरण कर ही प्रकृति का संतुलन बना रह सकता है, अन्यथा यह आधुनिक विकास आध्यात्मिक गुणों के अभाव में सृष्टि का पूर्णतः नाश करने में समर्थ है।


--विव
(विवेक शुक्ला)



@Viv Amazing Life

Follow Me