शिक्षा नीति 2020 : मेरी नजऱ | Education Policy 2020 : My Views
शिक्षा नीति 2020 : मेरी नजऱ
शिक्षा नीति वो शैक्षिक दिशा निर्देश हैं, जो भारत सरकार द्वारा घोषित किये जाते हैं। इस नीति के द्वारा सरकार देश की शिक्षा व्यवस्था की दिशा निर्धारित करती है। शिक्षा नीति में उन सभी विषयों का उल्लेख होता है, जो सरकार के अनुसार देश की शिक्षा व्यवस्था के सुधार और उन्नति के लिए आवश्यक हैं।
महत्वपूर्ण यह है कि शिक्षा नीति में दिए गए दिशा निर्देश संवैधानिक दृष्टि से सिद्धांत के रूप में तो देखे जा सकते हैं, परंतु इसके अतिरिक्त यह स्वयं में कोई अधिकार नही रखते और इस कारण सरकार इन्हें प्रवत्त करने के लिए संवैधानिक एवं न्यायिक दृष्टि से बाध्य नहीं है।
2020 में घोषित शिक्षा नीति स्वतन्त्र भारत के इतिहास में आयी तीसरी बड़ी शिक्षा नीति है।
भारत की प्रथम शिक्षा नीति सन 1968 में कोठारी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा घोषित की गई थी। उस शिक्षा नीति का रुझान सभी को एक समान शिक्षा अवसर देने और 14 वर्ष की आयु तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने पर था। उस समय यह दोनों ही दिशा निर्देश भारतीय एकता और अखंडता के लिए आवश्यक थे।
भारत की दूसरी शिक्षा नीति सन 1986 में श्री राजीव गांधी द्वारा लायी गई थी। उस शिक्षा नीति का केंद्र शिक्षा के अधिकार को गरीब, पिछड़ों, दलितों इत्यादि तक पंहुचाना था। उस नीति में पहली बार छात्रों के लिए छात्रवृत्ति, और जो नागरिक आर्थिक समस्याओं के चलते बच्चों को विद्यालय भेजने में असमर्थ हैं उनके लिए प्रोत्साहन राशि कि बात की गई थी। इसके अतिरिक्त शिक्षा नीति में पहली बार स्वतंत्र शिक्षा संस्थानों की भी बात भी की गई थी। शिक्षा व्यवस्था को सुदृण करने के लिए देश की जीडीपी का 6% प्रतिवर्ष शिक्षा बजट के लिए आरक्षित करने का उल्लेख भी शिक्षा नीति में था।
सन 1992 में श्री पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में दूसरी शिक्षा नीति में कुछ संशोधन किये गए।
अब 28 वर्ष के एक बड़े अंतराल के बाद भारत की तीसरी शिक्षा नीति श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लाई गई है। 2020 में आई शिक्षा नीति के प्रमुख दिशा निर्देश इस प्रकार हैं :
1) शिक्षा के अनिवार्य अधिकार(RTE) को 6 से 14 वर्ष की आयु से बढ़ाकर 3 से 18 वर्ष करने का उल्लेख
2) प्रारंभिक बाल शिक्षा व्यवस्था और देखभाल पर ज़ोर
3) छात्र शिक्षा के प्रथम पाँच वर्ष तक मातृभाषा के आधार पर शिक्षा देने पर टिप्पणी
4) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) के विघटन की आवश्यकता पर बल
5) उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एमफिल को रद्द करने की बात
6) उच्च शिक्षा में बहु विकास विकल्प की आवश्यकता पर ज़ोर
7) शिक्षा प्रणाली के मूलभूत ढांचे को 10+2 से 5+3+3+4 में बदलने का उल्लेख
8) शिक्षा में क्रिटिकल थिंकिंग के प्रयोग-प्रसार पर टिप्पणी
9) शिक्षकों की नियुक्ति में पारदर्शिता रखनें और शिक्षा मित्रों अथवा अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति पर रोक लगाने की बात
10) विभिन्न विद्यालयों में सीमित संसाधनों के साझा प्रयोग की आवश्यकता पर ज़ोर
11) शिक्षा नीति में सरकार ने छात्रों के विद्यालय छोड़ने के प्रतिशत को लेकर चिंता जताई एवं उचित क़दम उठाकर आगामी 10 वर्षों में 100% बच्चों को माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करवाने के लक्ष्य की बात रखी
12) एक नए राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के गठन की आवश्यकता का भी उल्लेख किया गया
13) जीडीपी के 6% को शिक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये आरक्षित करने की बात भी की गई
शिक्षा नीति में आये कुछ नए दिशा निर्देश और मेरे विचार :
1) प्रारंभिक बाल शिक्षा व्यवस्था और देखभाल : मानव मस्तिष्क का अधिकांश विकास 7-8 वर्ष की आयु तक हो जाता है, इसकी आवश्यकता समझते हुए सरकार ने शिक्षा नीति में निःशुल्क प्रारंभिक शिक्षा पर बल दिया है। मेरे विचार में यह एक उत्तम कदम है।
2) शिक्षा प्रणाली के मूलभूत ढांचे को 10+2 से 5+3+3+4 बदलने का उल्लेख : यह एक महत्वपूर्ण बात है क्योंकि मनुष्य जीवन में कई चरण हैं और शिक्षा भी उसी आधार पर होनी चाहिए, वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में प्रयुक्त 10+2 मेरे विचार में उपयुक्त नहीं है।
3) शिक्षकों की नियुक्ति में पारदर्शिता : यह एक उचित बात है, इस प्रकार दोषपूर्ण सरकारी तंत्र की वजह से हो रहे शिक्षकों के शोषण पर रोक लगेगी और अच्छे शिक्षकों को उचित अवसर भी प्राप्त होंगे, इसके चलते समय के साथ शिक्षा स्तर में भी सुधार होगा।
4) उच्च शिक्षा में बहुविकास विकल्प की आवश्यकता पर ज़ोर : यह एक अच्छा कदम है क्योंकि आर्थिक समस्याओं के चलते बहुत से विद्यार्थी उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश तो लेते हैं पर उन्हें पूरा नहीं कर पाते, इस स्थिति में समय और शिक्षा को महत्व देते हुए 1 वर्ष में सर्टिफिकेट, 2 वर्ष में डिप्लोमा और तीन वर्ष में डिग्री देने की बात की गई है।
5) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) के विघटन की आवश्यकता पर बल : मेरे विचार में किसी भी संस्थान को शिक्षा क्षेत्र में सभी अधिकार देना ठीक नही है, इस कारण ऐसी संस्थाओं का विघटन शिक्षा स्तर में सुधार के लिए आवश्यक है।
दिशा निर्देशों को लेकर उठ रहे विवाद और असमंजस की स्थिति :
1) प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा के आधार पर हो : इस दिशा निर्देश को लेकर जनता में असमंजस की स्थिति बनी हुई है, कुछ लोग इसे नई दिशा में उत्तम कदम बता रहे हैं तो कुछ इसे वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को अशक्त करने की कोशिश कह रहे हैं।
मेरे विचार में शिक्षार्थी आधार के लिए प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए, सत्य यह भी है की इस दिशा निर्देश में कुछ नया नहीं है और इसका उल्लेख हमें पिछली दोनों शिक्षा नीतियों में भी मिलता है।
2) शिक्षा में क्रिटिकल थिंकिंग का प्रयोग प्रसार : इस दिशा निर्देश में भी लोगों का मत बटा दिखायी देता है, मेरे विचार में इस विषय पर केवल टिप्पणी मात्र कर देने से, शिक्षा क्षेत्र में क्रिटिकल थिंकिंग के प्रयोग-प्रसार में सहायता नहीं होगी, यह अति आवश्यक विषय है और सरकार को मार्गदर्शन हेतु गहन दिशा निर्देश देने चाहिए थे परंतु नई शिक्षा नीति में इसका अभाव प्रतीत होता है।
3) जीडीपी के 6% को शिक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये आरक्षित करने का उल्लेख : इस दिशा निर्देश को लेकर जनमानस अति उत्साहित प्रतीत हो रहा है क्योंकि वर्तमान में जीडीपी का लगभग 4% ही शिक्षा के लिये प्रयोग होता है।
मेरे विचार में यह अच्छा कदम है परंतु नया नहीं, स्वतंत्र भारत में आई सभी शिक्षा नीतियों के दिशा निर्देशों में जीडीपी का 6% शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग हो इसका उल्लेख मिलता है।
4) विभिन्न विद्यालयों में सीमित संसाधनों के साझा प्रयोग की आवश्यकता पर ज़ोर : इस दिशा निर्देश को लेकर भी बुद्धिजीवी बटे हुए प्रतीत होते हैं, एक पक्ष के अनुसार कुछ संसाधन नहीं होने से साझा संसाधन होने बेहतर हैं। परंतु इसके साथ यह संदेह भी जताया जा रहा है की इस नीति की आड़ में सरकार अपने उत्तरदायित्व से पीछे हट रही है और यदि इस प्रकार संसाधनों को प्रयोग में लाया गया तो संभवतः वो किसी के लिए भी लाभप्रद नहीं रह पायेंगे।
5) उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एमफिल को रद्द करने की बात : इस दिशा निर्देश को लेकर शिक्षित वर्ग बटा हुआ है, एक वर्ग रिसर्च के आधार के रूप में इसे देखता है और दूसरा इसके अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर रहा है।
मेरे विचार में जो छात्र एमफिल करते हैं, उनका गंतव्य भी पीएचडी ही होता है। इस आधार पर देखें तो एमफिल की अलग से कोई विशेष आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है।
मंशा को लेकर संशय :
1) शिक्षा नीति में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग(EWS) को लेकर निर्देशों के विषय में पूर्णतः चुप्पी साधी गई है। यह शांति इस कानून को अशक्त करने की दिशा में संकेत देती प्रतीत होती है।
2) नई नीति में शिक्षा के क्षेत्र में असमानताओं को कम करने की दिशा में कोई ठोस निर्देश नहीं मिलते, अर्थात पिछड़ा वर्ग के शिक्षा स्तर सुधार की दिशा में कोई उपरोक्त कदम लेती यह नीति प्रतीत नहीं होती है।
3) यूपीए सरकार के कार्यकाल में शिक्षा के अनिवार्य अधिकार(RTE) के अंतर्गत, शिक्षा स्तर उत्थान के लिए 2009 में कुछ कारगर नीतियाँ लायी गईं थी, नई नीति आवरण में तो पुरानी नीति का विस्तार लगती है परंतु यदि गहनता से देखें तो कुछ निर्देश अधिकार को निःशक्त करने की दिशा में संदेह भी उत्पन्न करते हैं।
मेरा अवलोकन और विचार :
मेरी दृष्टि में नई शिक्षा नीति को लेकर न हमें अति उत्साहित होने की आवश्यकता है और न ही निरुत्साहित होने की, आवश्यकता है तो केवल इसे समझने की और सम्पूर्णता में इसका अवलोकन करने की।
मैंने प्रारंभ में कहा शिक्षा नीति शिक्षा की दिशा में केवल दिशा निर्देश हैं और यह अपने आप में कोई संवैधानिक या न्यायिक अधिकार नहीं रखते। तो प्रत्येक सरकार नीतियाँ तो बहुत उत्तम बनाती है पर किसी कानूनी या संवैधानिक बाध्यता के न होते, इन्हें प्रयुक्त केवल कुछ अंशों में करती है और वह भी केवल अपनी आवश्यकता और राजनैतिक रुझान के अनुसार।
भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो शिक्षा नीति के केवल 15%-20% दिशा निर्देश ही किसी कानून या संविधानिक अधिकार में परिवर्तित हो पाते हैं और वो अधिकार ही वास्तविक रूप में शिक्षा व्यवस्था का स्तर औऱ दिशा निर्धारित करने में उपयोगी होते हैं।
मेरे विचार में नई शिक्षा नीति उत्तम है परंतु इससे पहले आई शिक्षा नीतियाँ भी अपने समय और आवश्यकताओं के अनुसार श्रेष्ट थीं। अतः देखना यह है की सरकार की कथनी और करनी में कितना समन्वय या भिन्नता हमें देखने को मिलती हैं क्योंकि अंत मे वही मंशा हमारी शिक्षा व्यवस्था की दशा और दिशा तय करेगी।