लेखक का उद्गार | Lekhak Ka Udgar
कैसे लेखक, अद्भुत आलय
जब शब्द नहीं पूजे जाते
ना वीणा की धुन नही पल्लव के स्वर
विक्षत दारुण अट्टहास प्रबल।
चेतना शून्य विकृत लेखन
पाषाण हृदय पाठक सबल
कल्पित दुर्गम इस मरुथल पर
नागफनी पोषित निर्जल।
झर झर सरिता से अश्रु बहे
कालजयी खुद कालग्रस्त
अस्तित्व का है महा समर
नही क्षण भंगुर केवल।।
No comments:
Post a Comment